Monday, March 28, 2016

|| नंगा चालीसा || + रमेशराज







                            || नंगा चालीसा ||

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+रमेशराज
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लुच्चे छिनरे सिरफिरे रहें तुम्हारे साथ,
तुम घूमो हर नीच के डाल हाथ में हाथ |

नमो नमो नंगे महाराजा, 
लाज सबै पर तुम्हें न लाजा ||1||  

झूठ तुम्हारे पांव दवाबै, 
तुम्हें न सच्ची बात सुहाबै||2||   

तुम असुरों में असुर बड़े हो, 
घड़ों बीच तुम चीक घड़े हो ||3||

तुमने जबसे नाक कटायी, 
और नाक पर रौनक आयी ||4||

सूपनखा तुम सँग इतरावै, 
सीता को नकटी बतलावै ||5||

घूमो लिये भीम-सी काया, 
काया लखि तुम पै मद छाया ||6||

सौ गज की है जीभ तुम्हारी, 
जिसके आगे दुनिया हारी ||7||

तुम आओ जब पीकर पउआ, 
तो बन जाते घर में हउआ ||8||

गिरगिट जैसे रूप तुम्हारे, 
तुमने हर पल बादर फारे ||9||

रखो जेब में फूटी कौड़ी, 
बात करो पर लम्बी-चौड़ी ||10||

बिच्छू जैसे चलन तुम्हारे, 
किसके तुमने डंक न मारे ||11||

शकुनी मामा तुमसे हारा, 
छल में नहीं जवाब तुम्हारा ||12||

अपनी महिमा स्वयम् बखानो, 
लूट सभी को दानी मानो ||13

जयचंदों के फंदों को तुम, 
रोज सराहो गंदों को तुम ||14

मगरमच्छ-सा रूप तुम्हारा, 
लील गया सुख-चैन हमारा ||15

कर्कश काँव-काँव के आगे, 
कोयल हारे, पल में भागे ||16

बगुला जैसी घात तुम्हारी, 
कैसे बचे मीन बेचारी ||17

दिखती जितनी सूरत भोली, 
वाणी में उतनी ही गोली ||18

वाणी जब छोड़े अंगारे, 
अच्छे-अच्छों को संहारे ||19

जीत कमीनेपन से बाजी, 
तुम बन जाते पंडित-क़ाज़ी ||20

जिसको भी तुम अपना बोलो, 
केवल उसकी जेब टटोलो ||21

मेघनाद-सा तुम हुंकारो, 
सबको अपशब्दों से मारो ||22

पापी की सत्ता के दौने, 
कर्म तुम्हारे सभी घिनौने ||23

आदर्शों की बात करो तुम, 
बात-बात में घात करो तुम ||24

रावण-कुल को सदा सराहो, 
तुम सज्जन से बैर निभाओ ||25

छल की गाओ बारहमासी, 
चलो हमेशा चाल सियासी ||26

खुद को गौतम बुद्ध बताओ, 
मछली मारो, मुर्गा खाओ ||27

सम्प्रदाय को धर्म बताओ, 
घृणा-भरे चिन्तन को लाओ ||28

मगरमच्छ की तरह जिओ तुम, 
रोज किसी का खून पियो तुम ||29

तुम हो जैसे गुड़ के चैंटे, 
रन्ग बदलने में करकैंटे ||30

जिसके सर पर हाथ फिराओ, 
तुरत उसी की भस्म बनाओ ||31

रहे फूलती सदा दलाली, 
जेब तुम्हारी रहे न खाली ||32

हे कउए गिद्धों के वंशज, 
तुमसे पावन भारत की रज ||33

मन लिया अब हमने डरकर, 
तुम कबिरा के ढाई आखर ||34                

ऐ अधमासुर कृपा कीजिए, 
हमें देख मत और खीजिए ||35

अपना कोप सरल कर लीजे, 
वाणी सहज तरल कर लीजे ||36

रूप समेटो तुम मायावी, 
हम पर मत यूँ होओ हावी ||37

बार-बार मत हमें पछाड़ो, 
और न शेर-समान दहाड़ो ||38

मान लिया तुम ही महान हो, 
अतः इधर भी दया-दान हो ||39

हे भगवन् हे केशव ईसा, 
भेंट तुम्हें नंगा-चालीसा ||40

अब न कहेंगे आपको कभी भूलकर नंग,
केली चिरती है चिरे रह काँटे के संग ||                      

-रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109 , ईसानगर , निकट-थाना सासनीगेट , अलीगढ़-२०२००१
मो.-९६३४५५१६३०