रमेशराज
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रमेशराज के व्यवस्था-विरोध के गीत
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1. मैं नेता हूं
+रमेशराज
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कहीं तुम्हें भी चिपका दूंगा
कोई पद भी दिलवा दूंगा
एक लाख केवल लेता हूं।
मैं नेता हूं।।
मेरी सारी झूठी बातें
जैसे मरुथल में बरसातें
आश्वासन का विक्रेता हूं।
मैं नेता हूं।।
जो मेरा चमचा बन जाता
यहां-वहां मेरे गुण गाता
उसकी जेबें भर देता हूं।।
मैं नेता हूं।।
रोज भूख पर भाषण देता
खुद मैं रसगुल्ले चर लेता
मैं मंचों का अभिनेता हूं।
मैं नेता हूं।।
तोप और ताबूत डकारूं
देश लूटते कभी न हारूं
गुण्डों की नैया खेता हूं
मैं नेता हूँ ।
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-रमेशराज
2. आपके क्या कहने
+रमेशराज
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जीत गये सरकार
आपके क्या कहने!
और गये सब हार
आपके क्या कहने!
कहीं किसी ने दारू पीकर वोट
दिया
और किसी को खूब आपने नोट
दिया।
गुण्डों के सरदार
आपके क्या कहने!
अब हो जय-जयकार
आपके क्या कहने।
जाति-धर्म के नारे देकर लड़वाया
कनपटियों पर कहीं तमंचा
रखवाया
कहीं जताया प्यार
आपके क्या कहने!
खोले संसद-द्वार
आपके क्या कहने!
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+रमेशराज
3. युद्ध् न होने देंगे भाई।।
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एटम का विस्फोट करेंगे
लेकिन गांधी बने रहेंगे
एक गाल पर थप्पड़ खाकर
दूजा गाल तुरत कर देंगे
भले भून डाले जनता को
आतंकी या आताताई
युद्ध न होने देंगे भाई।
दुश्मन कूटे-पीसे मारे
चिथड़े-चिथड़े करे हमारे
हम केवल खामोश रहेंगे
भले युद्ध को वो ललकारे
खुश हो चखते सिर्फ रहेंगे
हम सत्ता की दूध-मलाई
युद्ध न होने देंगे भाई।
कितने भी सैनिक शहीद हों
पाकिस्तान किन्तु जायेंगे
हम शरीफ के साथ बैठकर
अपनी फोटो खिंचवायेंगे
खाकर पाकिस्तानी चीनी
खत्म करें सारी कटुताई
युद्ध न होने देंगे भाई।
अब हमको कुछ याद नहीं है
क्या थी धारा तीन सौ सत्तर
हम तो केवल इतना जानें
खून नहीं है खून का उत्तर
भगत सिंह, बिस्मिल को
छोड़ो
हम गौतम-ईसा अनुयायी
युद्ध न होने देंगे भाई।
दुश्मन आता है तो आये
हम अरि को घर आने देंगे
पार नियंत्रण रेखा के हम
सेना कभी न जाने देंगे
दुश्मन बचकर जाये हंसकर
हमने ऐसी नीति बनायी
युद्ध न होने देंगे भाई!
यदि हम सबसे प्यार जताएं
हिंसा के बादल छंट जाएं
अपना है विश्वास इस तरह
सच्चे मनमोहन कहलाएं,
भले कहो तुम हमको कायर
पाटें पाक-हिन्द की खाई
युद्ध न होने देंगे भाई ।
-रमेशराज
4. उनसे क्या उम्मीद रखें
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जिनके आचराणों के किस्से केंची
जैसे हों,
कैसे उनको गाँव कहें जो दिल्ली जैसे हों।
नहीं सुरक्षा हो पायेगी गन्ध-भरे
वन की
काटी जायेगी डाली-टहनी तक
चन्दन की,
लोगों के व्यक्तित्व जहां पर केंची
जैसे हों।
जब हम सो जाएंगे मीठे सपने
देखेंगे
वे घर के तालों के लीवर-हुड़के
ऐंठेंगे,
क्या उनसे उम्मीद रखें जो चाभी
जैसे हों।
तय है वातावरण शोक-करुणा तक
जायेगा
कौन हंसेगा और ठहाके कौन
लगायेगा?
परिचय के संदर्भ जहां पर अर्थी
जैसे हों।
वहां आदमीयत को पूजा कभी न
जायेगा
कदम-कदम पर सच स्वारथ से
मातें खायेगा,
जहां रूप-आकार मनुज के कुर्सी
जैसे हों।
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-रमेशराज
5. क्यों जनता सहती है
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तरह-तरह के लेकर फंदे और जाल
बैठा है
सबसे ऊँची हर कुर्सी पर इक
दलाल बैठा है।
इसने रोज देश की नोची छुप-छुप
बोटी-बोटी
भाषण में पर रोज छुपायी अपनी
नीयत खोटी।
देशभक्त को देता गाली कर कमाल
बैठा है,
सबसे ऊँची हर कुर्सी पर इक
दलाल बैठा है।
इसके इर्द-गिर्द चमचों की भीड़
जमा रहती है,
ऐसे भ्रष्टाचारी को पर क्यों
जनता सहती है
जो किलकारी, मां की लोरी
कर हलाल बैठा है,
सबसे ऊँची हर कुर्सी पर इक
दलाल बैठा है।
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-रमेशराज
6. यह कैसा रति-बोध
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सारे दर्शक पड़े हुए है अब
हैरानी में
वे ले आये हैं राधा को राम-कहानी में।
यह कैसा रति-बोध अचम्भा सबको
है भारी!
रामायण के नायक ने वैदेही
दुत्कारी,
रही अश्रु की कथा शेष सीता की
बानी में।
मच-मंच नैतिकता को आहत देखें
कब तक
सिर्फ वर्जनाओं के प्रति चाहत देखें कब तक
कितने और डूबते जायें बन्धु गिलानी में।
सच के खत पढ़ते-गढ़ते अब लोग न
हंसिकाएं
नयन-नयन मैं डर के मंजर, छल की
कविताएं
आज सुहानी ओजस बानी गलतबयानी
में।
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-रमेशराज
7. ‘प्रेम’ शब्द का अर्थ
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कभी सियासत कभी हुकूमत और कभी
व्यापार हुआ
तुमसे मिलकर ‘प्रेम’ शब्द का
अर्थ रोज तलवार हुआ।
कभी आस्था कभी भावना कभी
जिन्दगी कत्ल हुई
जहां विशेषण सूरज-से थे वहां
रोशनी कत्ल हुई
यही हदिसा-यही हादिसा जाने
कितनी बार हुआ।
तुमसे मिलकर ‘प्रेम’ शब्द का
अर्थ रोज तलवार हुआ।
होते हुए असहमत पल-पल नित
सहमति के दंशों की
अब भी यादें ताजा हैं इस मन
पर रति के दंशों की
नागिन जैसी संज्ञाओं से
अनचाहा अभिसार हुआ
तुम से मिलकर ‘प्रेम’ शब्द का
अर्थ रोज तलवार हुआ।
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-रमेशराज
8. सबको देखा बारी-बारी
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चौपट हुए स्वदेशी धंधे सब के
गले विदेशी फंदे,
आज राह दिखलाते हमको पश्चिम
के खलनायक गंदे।
फूहड़ता का आज मुल्क में जगह-जगह
कोलाहल भारी,
सबको देखा बारी-बारी, देख सभी
को जनता हारी ||
कदाचार बारहमासी है सरसों में
सत्यानाशी है,
बने डाप्सी की आशंका अब घर-घर
अच्छी-खासी है।
पामोलिन की इस साजिश पर मौन
रहे सरकार हमारी
सबको देखा बारी-बारी, देख सभी
को जनता हारी ||
खौफनाक चिन्तन घेंघे का लेकर
आया साल्ट विदेशी
रोती आज नमक की डेली आयोडीन
ले रही पेशी।
मल्टीनेशन कम्पनियों ने खेती
चरी नमक की सारी
सबको देखा बारी-बारी , देख
सभी को जनता हारी ।।
चारों ओर दिखाते गिरगिट महंगाई
का ऐसा क्रिकिट
डीजल के छक्के पर छक्के पैटरोल
के चौके पक्के।
शतक करे पूरा कैरोसिन और रसोई
गैस हमारी,
सबको देखा बारी-बारी, देख सभी
को जनता हारी ||
संसद भीतर सभी सांसद अंग्रेजी
में ईलू बोले
भारत इनको लगे इण्डिया बन अंग्रेज कूदते डोलें।
अंग्रेजी डायन को लाकर सबने
भारत मां दुत्कारी
सब को देखा बारी-बारी, देख
सभी को जनता हारी ||
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-रमेशराज
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Rameshraj, 15/109, isanagar, nikat-thana sasni gate,
aligarh-202001, mob.-9634551630
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