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रमेशराज
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लोकगीत –1
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दाल डिजीटल हो गयी, उसके सँग में
प्याज
चकाचौंध में आ गये फल सब्जी भी आज,
मुख पै आये दुःख के भाव डिजीटल
कर ले लांगुरिया ||
इस सिस्टम में चीखना तेरा है बेकार
पी ले तू कड़वी दवा यही एक उपचार
,
अपने मन के सारे घाव डिजीटल कर
ले लांगुरिया ||
कपड़ों में चिंदी लगा , बिना तेल
रख बाल
रूखी सूखी खाय घट ठंडा पानी डाल
,
टूटी फूटी घर की नाव डिजीटल कर
ले लांगुरिया ||
अच्छे दिन की आस में मस्त मस्त
तू डोल
पूंजीवादी सोच सँग ईलू ईलू बोल
,
सिसकते जीवन का उलझाव डिजीटल कर
ले लांगुरिया ||
+रमेशराज
लोकगीत-2
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टम्पू बारौ एक रुपइया ज्यादा
लैग्यो लांगुरिया
बा रुपया ते लाबती नीले-पीले रंग
जमि कैं होली खेलती सैंया जी के
संग,
टम्पू बारौ एक रुपइया ज्यादा लैग्यौ
लांगुरिया।
एक रुपइया के बिना बिगरे कैसे
काम
गुदवा लेती बांह पै सैंयाजी कौ
नाम,
टम्पू बारौ एक रुपइया ज्यादा लैग्यौ
लांगुरिया।
टम्पू बारे की भयी नीयत खूब खराब
बा रुपया ते रात कूं पीवै मुंओ
शराब,
टम्पू बारौ एक रुपइया ज्यादा लैग्यौ
लांगुरिया।
रपट लिखाने मैं गयी बौल्यौ थानेदार
लै-लै दस कौ नोट तू करि लै मोते
प्यार,
टम्पू बारौ एक रुपइया ज्यादा लैग्यौ
लांगुरिया।
लांगुर तेरे देश में लूटें बेईमान
जानि-बूझि कैं मति बनै नेता-सौ
अन्जान
टम्पू बारौ एक रुपइया ज्यादा लैग्यौ
लांगुरिया।
तबहि चढ़ाऊँ नारियल तबहि चढ़ाऊँ फूल
काटै गर्दन दुष्ट की मैया कौ तिरशूल
टम्पू बारौ एक रुपइया ज्यादा लैग्यौ
लांगुरिया।
-रमेशराज
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